Thursday 23 August 2018

कैदी "मैं"



क्यों ना "मैं" ही से शुरुआत करें,
क्यों ना "मैं" ही को खोजें पहले
जो तू कह रहा है के खो गया है कही इस भीड़ में. . .

ये "मैं" कौन है? आखिर दिखता कैसा है?
क्या वो शक्ल सूरत में बिलकुल तेरे जैसा है?
शक्ल सूरत है भी उसकी या नहीं
या फिर दिखाता तू जैसे, ये दिखता वैसा ही है

क्या इस "मैं" को नाम पहचान भी है कोई
या फिर जिस नाम से मिलाता है तू सबको बस ये वही है?
ये "मैं" जो तू केह रहा है की वो भीड़ में खो गया है कही,
मुझे तो शक है, के तूने ही उसे कही कैद कर रखा है

एक ऐसी जगह जहासे दूर दूर तक किसी की आवाज़ ना सुनाई दे
दरवाज़ा लाख खोलना चाहे कोई, तालें की चाबी तक तू उसे पोहोचनें ना दे

के इस "मैं" को तुझे छुड़ाना ही होगा
वो "मैं" जो एक आज़ाद पंछी की तरह उड़ना चाहता है
वो "मैं" जो दायरे के बाहर जाकर कुछ सोचना चाहता है
वो "मैं" जो तेरे ख़्वाबों पर आज भी यकीन करता है

उस "मैं" से तुझे मिलना ही होगा,
भीड़ में जो जी रहा है तू अपनी जिंदगी
उसमें खो कर तुझे "मैं" को पाना ही होगा

उस "मैं" से गर मिल पाया तू, तो ज़िन्दगी जिया तू
न मिल पाया गर उस "मैं" से कभी, तो क्या जिंदगी जिया तू. . .


शुक्रिया. .

प्राची खैरनार.





Copyright © Prachi Khairnar.






Saturday 18 August 2018

कश्ती

नमश्कार दोस्तों!! दोस्तों, हम सभी ने बचपन में कागज़ की कश्ती बनाके तालाब में, बारिश के पानी से बने छोटे से गड्ढे में,  नदी, झरनों में या समंदर में छोड़ी तो जरुर होगी. बस्स, मैंने भी ऐसी ही एक कश्ती छोड़ी थी समंदर में, अब वो कश्ती लौट आयी है, बड़ी हो गयी है वो कुछ अलग सी भी लग रही है यूँ माने तो जैसे कई layers चढ़े हो उसके ऊपर. पर उसने मुझे और मैंने उसे पहचान लिया है. उससे एक अरसे बाद हुई मुलाक़ात बयाँ कर रही हूँ.


जाने कौन दिशा हो कर आयी है
ना जाने कितने देश घूम आयी है
वो जो छोड़ दी थी कभी नाम पता लिख के
मेरी ये कश्ती एक अरसे बाद लौट आई है

पहले से थोड़ी अलग लग रही है अब और बड़ी भी
कुछ जंग सा चढ गया है मगर, शायद ऐसे कुछ मौसमों से वो गुजर आयी है
कही कोई खरोच के निशाँ भी है, जैसे किसी से बचते बचाते वो निकल आयी है
जितनी उजली हुई उतनीही कुछ थकी सी लग रही है
तजुर्बों का वजन कुछ भारी हो गया लगता है; ख्वाहिशों और उम्मीदों पर

जाने कौन दिशा हो कर आयी है
लगता है जैसे बहोत कुछ देख आयी है

अब जब हम दोनों फुर्सत से गुफ्तगू कर रहे है इस समंदर के किनारे
चाँद की मद्धम सी रौशनी तलें, जाने कितनी छटाएं झलक रही है बात ही बात में
कुछ कुछ सुलझी हुई सी कुछ कुछ उलझी हुई सी
कुछ खुशनुमा भी कुछ उदास भी

बहोत कुछ ये देख समझ आयी है
उलझनों में भी अजीब सी सुलझन इसने पायी है
जाने कौन दिशा हो कर आयी है
मेरी ये कश्ती एक अरसे बाद लौट आई है


शुक्रिया. .

प्राची खैरनार.





Copyright © Prachi Khairnar.

Tuesday 14 August 2018

इक छोटासा टुकड़ा आसमान का

नमश्कार दोस्तों, डायरी के पन्ने पलटते समय ये छोटासा टुकड़ा हाथ लग गया आसमान का, जो चुपकेसे तोड़ लिया था कभी. पर समय के साथ so called practical life में कुछ भूल सी गयी थी.  अब जब याद आ गयी है उसकी तो मालूम हो रहा है वो कही छुप कर बैठा है और साथ साथ मेरे ऐसे ही कुछ और साथियों को भी ले चला है. आपको दिख जाए तो इत्तेलाह जरूर कीजियेगा, अब जब खोने का एहसास हुआ है उन्हें तो एहमियत पता चल रही है उनकी. साथ निभाने का वादा जरूर करुँगी अगर मिल जाए ये साथी मेरे.  देखें. . .

इक छोटासा टुकड़ा आसमान का
नजर बचाके सबकी तोड़ लिया था कभी चुपकेसे
पता नहीं कहा छुपकर बैठा है

परेशान इसलिए भी हूँ
के कम्बख़त ने मेरी ख्वाहिशों को भी अपनी टीम में शामिल कर लिया है
और उनको ढूंढते राह चलते पता नहीं
शायद मेरे ख्वाबों ने भी उन्हें जॉइन कर लिया है कही

आपको दिख जाएँ अगर तो नजर रखियेगा जरा
आसमान कुछ हलके भूरे रंगो के कपड़ें पहने हुए है
ख्वाहिशें बड़ी मासूम और नन्ही है मेरी
रंगबिरंगी तितलियों जैसी
ख्वाबों का कद् ऊँचा है मेरे ,
रंगो का तो पता नहीं पर बड़ी सी चादर लपेटें हुए घूमता है
जाने क्या क्या समेटे हुए रहता है.

आपको दिख जाए अगर तो खबर कीजिएगा जरूर
एक छोटासा टुकड़ा है आसमान का
पता नहीं कहा छुप कर बैठा है



शुक्रिया. .


प्राची खैरनार.



Copyright © Prachi Khairnar.

Tuesday 7 August 2018

कुछ हसीं लम्हें . . . फिर से




बहोत दिनों बाद कुछ हस पड़ा ये दिल है आज
कुछ हसीं लम्हों ने फिर से भर दिया ये दामन है आज

कुछ अनछूएसे तार छेड़ दिए यूँ किसी ने आज
बिखरे से सुरों में मिल रहा अलग सुर है आज

चाँद तो आज भी बादलों से तक रहा है लेकिन
कई अनगिनत सितारों ने भर दिया ये मेरा आँगन है आज

बहोत दिनों बाद कुछ हस पड़ा ये दिल है आज
कुछ हसीं लम्हों को फिर से जी भर के जी लिया है आज

कैसे बयाँ करें खुद से हुई मुलाकात का मज़ा
खुद को खो कर शायद खुद को पा लिया है आज

यूँ तो कई बार खुद से रूठने मनाने के सिलसिले हुए मगर
खुद से ही खुद को जीत लेने के एहसास को जिया है आज

यूँ तोह एहसास एक जज्बा है फिर भी
उसी एहसास को जुबाँ मिल गयी है आज

बहोत दिनों बाद कुछ हस पड़ा ये दिल है आज
कुछ हसीं लम्हों ने फिर से भर दिया ये दामन है आज


धन्यवाद!


प्राची खैरनार.



Copyright © Prachi Khairnar.