Tuesday 25 September 2018

सिगरेट

सिगरेट पिनेकी आदत नहीं मुझे
फिर भी गलेमे खराशें है एक अरसे से  
ज़िन्दगी. .  तेरे कश कुछ ज्यादा ही लगा लिए शायद 

धुवां धुवां सी है अब तू
जैसे कोहरे में ले जा रही कही
कुछ कश तूने फेकें मुझपे
कुछ ग़म मैं फूँक रही हूँ कही

है कुछ ऐसा कश मैं लगाती हूँ जलती मगर तू है
दर्द मैं निगलती हूँ कतरा कतरा ख़त्म होती मगर तू है
हर एक कश के बाद जो हलके से झटक दू तुझको तो
दो चार जलते अरमान ख़ाक हो ही जाते है
अरमान ही तो थे यहाँ तो ऐ ज़िन्दगी तेरे साथ मेरे लम्हें भी तो जल रहे है

हर एक लम्हा, हर एक अरमान धुवां हो गया कही
कोहरे में ढूंढ रही हूँ उन्हें, के इस उम्मीद में
कही कोइ बन के ओस बैठा हो मेरे इंतज़ार में
के मैं आऊं और समा लू फिर से उसे अपने आप में


धन्यवाद!

प्राची खैरनार.


Copyright © Prachi Khairnar.


Monday 10 September 2018

मैं भी कुछ हूं

उन तमाम महिलाओं के लिए जो कही न कही आज भी लड़ रही है अपना अस्तित्व, अपना वजूद ढूंढने के लिए, अपने सपनों को जीने के लिए.

के मैं भी कुछ हूं, ये मुझे खुद को है याद दिलाना
खुदसे जो वादे किये है अनगिनत, उन्हें मुझे ही है निभाना

पर शायद मन में कुछ ठहराव सा है
बरसों चली आ रही परम्पराओंका, कुछ बोझ सा है
आजभी कही कोई खिचाव सा है
उस कंगन, पायल या बिंदी के घेराव में बसी एक ज़िन्दगी का  है
मेरे औरत होने के दायरों का, लकीरों का है

एक माँ, एक बेहेन, एक पत्नी का धर्म तो निभाना है लेकिन
मेरे औरत होने के धर्मको निभाना अभी बाकी है
मेरे खुद के होने के एहसास को पहचानना अभी बाकी है
खुद से किये हुए वादों को जानना अभी बाकी है.

कुछ है ऐसा, जिसका संघर्ष अभी बाकी है
एक माँ, एक बहन और हर उस औरत को
ये एहसास दिलाना जरूरी है
के तू भी कुछ है, ये तूने खुदने मानना जरूरी है

तभी शायद कंधे से कन्धा मिलाने का असली मतलब तू समझ पाए
और अपने आपमें बसी उस औरत को और  हर उस इंसान को ये जता पाए
के तू भी कुछ है. . हाँ, तू भी कुछ है



शुक्रिया. .

प्राची खैरनार.



Copyright © Prachi Khairnar.