Monday 4 January 2016

लम्हें


हर एक की ज़िंदगी कुछ खट्टे कुछ मीठे लम्हों से जुडी हुई है. इन्ही लम्हों से तोह हमारी ज़िंदगी बनी हुई हैं. पर कई बार लम्हों की खटास रिश्तों में कब आ जाती है पता ही नहीं चलता. और रिश्तों को बनने सँवारने का मौका ही नहीं मिलता. क्यों ना आज इस नए साल के अवसर पर वो सारी खटास को हम मिटा दें, और फिर से उन् रिश्तों को वहींसे सँवारे जहांसे छूट गए थे  और नए लम्हें जोड़ ज़िंदगी और खूबसूरत बनायें.


आज फिरसे ख़्वाबों मे आना कुछ इस तरह,
जैसे कभी नींद खुली ही न थी।

आज फिर से थाम लेना तुम दामन मेरा,
जैसे कभी ये हाथ छूटे ही न थे।

चलो ना, आज फिर से उस समंदर के किनारे जाए हम,
फिर से चुन चुन कर सीपियाँ उठाये हम।

क्यों ना वही लम्हे फिर से जीयें हम,
क्यों ना जहासें छूटें थे वही फिरसे मिले हम।

याद है, ऐसेही एक सिपीं का  उठाकर तुम्हारा वो चौकां देना,
और सिपीं में मोती कैद कर मुझे वो  तोहफा देना।

वो लम्हा मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीं लम्हा था,
चलो ना, फिर से ऐसेही कुछ लम्हे जीयें हम।

क्यों ना आज फिर से ख़्वाबों में मिले हम,
और फिर एक बार एकदूसरे का दामन थाम ले हम

चलो ना, आज फिर से जीयें हम,
लम्हा लम्हा ज़िंदगी जोड़ें हम।




धन्यवाद!

प्राची खैरनार.


Copyrights Reserved © Prachi Khairnar.