सिगरेट पिनेकी आदत नहीं मुझे
धुवां धुवां सी है अब तू
जैसे कोहरे में ले जा रही कही
कुछ कश तूने फेकें मुझपे
कुछ ग़म मैं फूँक रही हूँ कही
है कुछ ऐसा कश मैं लगाती हूँ जलती मगर तू है
दर्द मैं निगलती हूँ कतरा कतरा ख़त्म होती मगर तू है
हर एक कश के बाद जो हलके से झटक दू तुझको तो
दो चार जलते अरमान ख़ाक हो ही जाते है
अरमान ही तो थे यहाँ तो ऐ ज़िन्दगी तेरे साथ मेरे लम्हें भी तो जल रहे है
हर एक लम्हा, हर एक अरमान धुवां हो गया कही
कोहरे में ढूंढ रही हूँ उन्हें, के इस उम्मीद में
कही कोइ बन के ओस बैठा हो मेरे इंतज़ार में
के मैं आऊं और समा लू फिर से उसे अपने आप में
धन्यवाद!
प्राची खैरनार.
Copyright © Prachi Khairnar.
फिर भी गलेमे खराशें है एक अरसे से
ज़िन्दगी. . तेरे कश कुछ ज्यादा ही लगा लिए शायद
धुवां धुवां सी है अब तू
जैसे कोहरे में ले जा रही कही
कुछ कश तूने फेकें मुझपे
कुछ ग़म मैं फूँक रही हूँ कही
है कुछ ऐसा कश मैं लगाती हूँ जलती मगर तू है
दर्द मैं निगलती हूँ कतरा कतरा ख़त्म होती मगर तू है
हर एक कश के बाद जो हलके से झटक दू तुझको तो
दो चार जलते अरमान ख़ाक हो ही जाते है
अरमान ही तो थे यहाँ तो ऐ ज़िन्दगी तेरे साथ मेरे लम्हें भी तो जल रहे है
हर एक लम्हा, हर एक अरमान धुवां हो गया कही
कोहरे में ढूंढ रही हूँ उन्हें, के इस उम्मीद में
कही कोइ बन के ओस बैठा हो मेरे इंतज़ार में
के मैं आऊं और समा लू फिर से उसे अपने आप में
धन्यवाद!
प्राची खैरनार.
Copyright © Prachi Khairnar.